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रथयात्रा के खिलाफ एक अनजाने NGO को इतने बड़े बड़े वकील कहाँ से मिले, फंडिंग कहा से हो रही ?


भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो रोक लगाई थी उसे हटा लिया है। सोमवार (जून 22, 2020) को सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के साथ रथयात्रा निकालने की अनुमति दी है।

यात्रा पर रोक लगाए जाने के बाद कई याचिकाएँ दाखिल कर शीर्ष अदालत से पुनर्विचार का आग्रह किया गया था। इन याचिकाओं में कहा गया था कि जगन्नाथ रथयात्रा सदियों पुरानी परंपरा है। इससे करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। इस यात्रा को सिर्फ पुरी में ही निकालने की इजाजत दी जाए।

याचिका में माँग की गई थी कि पुरी की मुख्य रथ यात्रा को ही अनुमति दे दी जाए। कोर्ट से आग्रह किया गया कि यात्रा निकालने और पूजा के लिए लाखों लोगों के बजाय सिर्फ 500-600 लोगों को ही अनुमति दी जाए। इस दौरान कोरोना से बचाव संबंधी सभी गाइडलाइन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने का भरोसा भी दिलाया गया।


यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि जगन्नाथ यात्रा को रोकने के लिए ‘ओडिशा विकास परिषद’ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी गई थी। ‘ओडिशा विकास परिषद’ NGO का नाम शायद ही कभी प्रकाश में आया हो। ये एक अनजाना सा ही नाम है, मगर इसने मुकुल रोहतगी, रंजीत कुमार जैसे वरिष्ठ वकील को अपना पक्ष रखने के लिए रखा।

ऐसे में ये सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है कि ये NGO नक्सलियों द्वारा या फिर ईसाई मिशनरियों द्वारा बनाया गया है, या फिर पहले से ही था।

इससे पहले इस एनजीओ ने 5 जून को होने वाले स्नान पूर्णिमा पर रोक लगाए जाने को लेकर ओडिशा हाईकोर्ट का रुख किया था कि अगर ये उत्सव मनाया गया तो महामारी फैल जाएगा। जब देश पहले से ही कोरोना जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रही है, ऐसे में इस तरह की बातें करना भय को बढ़ावा देने से ज्यादा कुछ नहीं है।

अगर ओडिशा विकास परिषद को कोरोना को फैलने से रोकने, लोगों को इसके प्रति जागरुक करने या फिर उनकी स्वास्थ्य को लेकर इतनी ही चिंता थी, तो क्या उन्होंने इसको लेकर किसी प्रकार का अभियान चलाया? किसी तरह की सेवा प्रदान की? इस बारे में कहीं कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

खैर, ये एक अनजाना सा नाम है, जिसे एक जरिया के तौर पर इस्तेमाल किया गया। ये लोग स्नान पूर्णिमा को रुकवाना चाहते थे। इस मामले में केंद्र सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए थे कि यह राज्य सरकार का विषय है कि वो इसे करवाना चाहती है या नहीं।

शुक्रवार तक जब तक कि रोक हटवाने की मुहिम पब्लिक मूवमेंट नहीं बनी थी, न तो केंद्र सरकार, न राज्य सरकार और न ही कोई भी पार्टी इसको लेकर गंभीर थी। किसी भी बीजेपी नेता ने न तो इसको लेकर ट्वीट किया और न ही कोई मुहिम चलाई।

हम चाहते हैं कि रथ यात्रा की परंपरा चलती रहे, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि लोग इकट्ठा हों, क्योंकि ये महामारी का समय है। अगर हम भी ऐसा करेंगे तो तबलीगी जमात और हम में क्या अंतर रह जाता है। स्नान पूर्णिमा के दिन वहाँ पर पुजारियों और संतों के अलावा एक भी इंसान नहीं आया। इतनी समझ तो है हिंदू में।

मगर ओडिशा विकास परिषद का तो ये मकसद था ही नहीं। ये नक्सली, आतंकियों के हिमायती, हिंदू से घृणा करने वाले और वामपंथी विचारधारा की पूरी लॉबी हिंदुओं के हर प्रतीक को नष्ट करना चाहती है। महामारी के इस समय में हिंदुओं के परंपरा को तोड़ना चाहती है।

और फिर बाद में इसको लेकर ताना भी देती है कि हमने जगन्नाथ रथ यात्रा रुकवा दिया। हमने तो तुम्हारे भगवान को 70 सालों तक टेंट में बैठाकर रखा। इसे सुनकर हिंदुओं के मन में हीन भावना आती है कि 80% आबादी हमारी है, सरकार भी इसी मुद्दे पर सत्ता में आती है, लेकिन इसके बावजूद ओडिशा विकास परिषद जैसा संस्थान सीधा सुप्रीम कोर्ट पहुँच जाता है। लोग इसकी गंभीरता को नहीं समझ पाते हैं। 
 
जब सुप्रीम कोर्ट ने रथ यात्रा की इजाजत दे दी तो लिबरल गिरोह ने एक नया प्रपंच फैलाना शुरू किया कि आफताब हुसैन नाम के मुस्लिम लड़के ने रथ यात्रा की परंपरा टूटने से बचा लिया। हाँ, ये सच है कि मुस्लिम लड़के ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। मगर वो इकलौता नहीं था। और भी लोग थे जिन्होंने याचिका दायर की।

गजपति महाराज जैसे लोग थे जो सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद से ही इसे हटाने के लिए अलग-अलग स्तरों पर प्रयास कर रहे थे। लेकिन लिबरल गिरोह का प्रोपेगेंडा देखिए, पहले तो रथ यात्रा न हो इसके लिए तमाम प्रयास किए और जब यह प्रयास सफल नहीं हुआ, कोर्ट ने मंजूरी दे दी तो सिक्यूलर छवि के नाम पर एक मुस्लिम याचिकाकर्ता को हीरो बनाया जा रहा है।

बता दें कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार, बीजेपी नेता संबित पात्रा, जगन्नाथ संस्कृत जन जागरण मंच, अंतरराष्ट्रीय हिंदू महासभा संघ, लक्ष्मी बिस्बाल आदि की तरफ से कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी, जिसमें कहा गया कि मंदिर में 1172 सेवक हैं।

इन सभी का कोविड-19 टेस्ट किया जा चुका है जो निगेटिव आया है। तीनों रथ खींचने के लिए 750 लोगों की आवश्यकता होती है। मंदिर के पास 1172 सेवक हैं। ये लोग ही रथों को खींचकर गुंडिचा मंदिर तक ले जा सकते हैं। इस तरह रथयात्रा बिना बाहरी लोगों के शामिल हुए भी निकाली जा सकती है।

मगर एनडीटीवी, द वायर जैसी कई मीडिया संस्थान मे मुस्लिम लड़के आफताब का ऐसे महिमामंडन किया कि उसने हिंदुओं की परंपरा को टूटने से बचा लिया और हिंदुओं को इसके लिए उसका आभारी होना चाहिए। मीडिया पोर्टल ने इसके माध्यम से मुस्लिम की हिन्दू देवताओं के प्रति ‘आस्था’ दिखाने का भी भरसक प्रयास किया। full-width


source https://www.dailynv.com/2020/06/ngo.html