जो लोग भीतरसे गन्दे रहकर बाहरी सजावटके द्वारा गन्दगीको ढकना चाहते हैं , उनकी गन्दगी घटती नहीं , अपितु बढ़ती है और वे भीतरकी गन्दगीके बुरे फलसे भी नहीं बच सकते । सच्चा लाभ तो भीतरकी गन्दगीको मिटानेपर ही मिलता है ।
याद रखो - तुम्हारे मनमें यदि काम , क्रोध , लोभ , असूया , द्वेष , हिंसा आदि दोष भरे हैं , तुम उनके दूर करनेका कोई प्रयत्न नहीं करते वरं उनका रहना तुम्हें बुरा भी नहीं मालूम होता और तुम ऊपरसे निष्कामता , क्षमा , त्याग , गुण - दर्शन , प्रेम और सेवाका उपदेश करने में बड़ी ऊँची उड़ान भरते हो तो इससे तुम्हें क्या लाभ है ? इससे तो दम्भ ही बढ़ता है ।
याद रखो - उपर से यदि लोग तुममें कोई अच्छाई न भी देखें और तुम्हारा हृदय दोषरहित और पवित्र है तो तुम वस्तुतः अच्छे हो । अच्छा असलमें वही है , जो अपने अन्तर्यामी भगवान्के सामने अच्छा है , उनकी दृष्टिमें निर्दोष है
याद रखो - तुम जो भक्ति प्रेम और ज्ञानकी बातें करते हो , इनका भी कोई मूल्य नहीं है , यदि तुम्हारे हृदयमें भक्तिकी पवित्र प्रभुपरायणता , प्रेमकी मधुर और निष्काम सरसता एवं ज्ञानकी दिव्य ज्योति नहीं है । मनसे भक्त बनो , प्रेमका मनमें ही अनुभव करो और ज्ञानके प्रकाशको अन्दर ही प्रदीप्त करो , तभीमनसे भक्त बनो , प्रेमको मनमें ही अनुभव करो और ज्ञानके प्रकाशको अन्दर ही प्रदीप्त करो , तभी उनका असली लाभ मिलेगा ।
याद रखो - बाहरके बहुत बड़े आडम्बरकी , सच्चे क्षुद्रतम भावके साथ भी तुलना नहीं हो सकती । सच्चाई पैदा करो - सच्चाई थोड़ी है , तब भी वह महान् उपकार करनेवाली है , क्योंकि सच्चाई है ।
याद रखो - उपदेशकका उपदेश पहले उसके अपने लिये ही होना चाहिये । जो कुछ अच्छी बात तुम कहना चाहते हो , कहते हो ; उसे पहले अपने प्रति कहो और वस्तुतः तुम उसे अच्छी मानते हो तो उसे अपनेजीवनमें धारण कर लो । दूसरेके हितके लिये अपने हितका परित्याग करना तो पुण्य है ; परंतु जो हितको अपने लिये हित ही नहीं समझता , केवल दूसरोंके लिये ही उसे हित बतलानेका नाटक करता है , वह अपने हितका त्याग क्या करेगा । उसके पास तो अपना हित है ही नहीं , वह तो केवल लोगोंको ठगनेके लिये , उनके सामने अपनेको सदाचारी महात्मा सिद्ध करनेके लिये कपट करता है । उसे इतना भी विश्वास नहीं है कि अन्तर्यामी भगवान् मेरे कपटको जानते हैं और वे इससे रुष्ट होंगे । ऐसा पुरुष न तो अपना ही हित करता है और न दूसरोंका ही ।
याद रखो - मनुष्य - जीवन सचमुच बड़ा दुर्लभ है , यह व्यर्थ खोने या पाप कमानेके लिये नहीं मिला है । इसका यथार्थ सदुपयोग करो । इसके एक - एक क्षणको भगवान्के चिन्तनमें लगा दो । मत भूलो यहाँके धन - जन , विद्या - बुद्धि , सम्मान - सत्कार , प्रभुत्व - अधिकार और मेरे - तेरेके मोहमें जीवन बीता जा रहा है । जबतक मृत्यु नहीं घेरती ; इन्द्रिय और मन काम देते हैं , तभीतक कुछ कर सकते हो । बड़ी लगनसे लगा दो मनकी प्रत्येक वृत्तिको , शरीरकी प्रत्येक क्रियाको , इन्द्रियकी प्रत्येक चेष्टाको श्रीभगवान के भजनमें ।
याद रखो यहाँकी मान - बड़ाई , धन - वैभव , यश - कीर्ति और प्रभुत्व - अधिकारको तुमने प्रचुर रूपमें प्राप्त भी कर लिया तो क्या होगा उससे ।तुम्हारे साथ जायगा केवल तुम्हारा कर्म – संस्कार ।इनमेंसे कोई भी न तो तुम्हारा साथ देगा , न तो तुम्हारा सहायक होगा ।तुम्हारा जीवन व्यर्थ चला जायगा ।व्यर्थ ही नहीं , जागतिक लाभको कामनासे जो पाप - कर्म तुमसे बन रहे हैं , इनका बोझ तुम्हारे साथ जायगा , जो असंख्य जन्मोंतक तुम्हें कष्ट देता रहेगा ।अतएव जल्दी सावधान हो जाओ ।मानव - जीवनके वास्तविक लक्ष्यको समझो और जीवनके प्रत्येक क्षणको उसीकी सिद्धिमें लगा दो ।
