तीन उदाहरण देखिये
1. जनरल डायर जिसने जलियांवाला बाग में सैकड़ों लोगों को गोली से मरवा दिया था। उसकी हत्या शहीद उधम सिंह ने 1940 में लंदन में की। गांधी जी और कांग्रेस ने उधम सिंह की निंदा की।
2. लाला लाजपत राय के हत्यारों को मारने वाले भगत सिंह की माफी की कोशिश आधे मन से हुई क्योंकि उनको डर था कि इससे लार्ड इरविन गुस्से में आ जाएंगे जिनसे दांडी यात्रा के बाद एक पैक्ट के लिए मीटिंगे हो रही थी।
3. बंगाल में 1899 में भीषण अकाल पड़ा था जिसका प्रबंधन करने की ज़िम्मेदारी कर्जन वायली पर थी । उसने ऐसा काम किया कि लाखों लोग मारे गए। इसको 1909 में मदनलाल ढींगरा ने लंदन में चेहरे पर गोलियां मार कर खत्म किया था।
ये तीनों कोई पेशेवर हत्यारे नही थे, इन्होंने निजी या व्यवसायिक दुश्मनी के चलते या धर्म की लड़ाई के चलते इन अंग्रेजों को नही मारा था। इन्होंने देश की तरफ से इनके अत्याचारों का बदला लिया था,सिर्फ इन्ही को मारा न कि अंधाधुंध गोलियां चलाई।
पर गांधी जी और कांग्रेस ने इनकी निंदा की क्योंकि हिंसा हमेशा निंदनीय है। इन लोगों को भटके हुए नौजवान कहा गया।
स्वामी श्रद्धानन्द वाला मामला तो सबको पता ही है, उसमें धर्म के कारण एक मुस्लिम अब्दुल ने हिन्दू को मार दिया था पर गांधी ने उसको गोल-मोल बातें कर के अपना भाई कहा । तब उनसे इस हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा नही हुई। ये भी कहा कि शांति के लिए हिंदुओ को अपना गला भी कटवा लेना चाहिए
गांधी मुस्लिमों की खुशामद करते थे। वो भीष्म की तरह थे, जब कृष्ण ने भीष्म से बोला कि पांडवों के साथ अन्याय हुआ तब भीष्म ने कहा कि मुझे न्याय अन्याय से मतलब नही बस घर मे झगड़े न हों।
जब घर मे दो बच्चें हों तो जो सीधा बच्चा होता है उसको ही ज्ञान दिया जाता है कि तेरा भाई तो दुष्ट है पर तु तो समझदार है तू ही थोड़ी कम मिठाई ले ले।
गांधी जी कुछ भी करके यथा स्थिति बनाये रखना चाहते थे, जबकि अम्बेडकर इस मामले में दूरदर्शी थे, उन्होंने बहुत पहले ही चेता दिया था कि इस्लामिक राष्ट्र की मांग उठेगी।सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद भी गांधी जी की इस्लाम के प्रति सोच से असहमत थे।
भारत मे धर्म के आधार पर जो पहली राजनीतिक पार्टी बनी उसका नाम मुस्लिम लीग था, हिन्दू महासभा उसके बाद बनी। हिंदुओं की कट्टरता सिर्फ और सिर्फ मुस्लिमो की कट्टरता का प्रतिवाद है।
आज के समय मे देखिए जो भी मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करता है उसकी क्या हालत है ? गांधी भी तुष्टिकरण ही करते थे आज के ज़माने में उनकी क्या प्रासंगिकता है आप खुद ही सोच सकते हैं।
कई लोग ज्ञान देते हैं कि विदेशों में गांधी के नाम की धूम है,यूनिवर्सिटी हैं। उन देशों का एक भी आदमी गांधी जी की अहिंसा की या बंटवारे की बलि नही चढ़ा,मरने वाले सब भारतीय ही थे। पड़ोसी के घर मे भगतसिंह अच्छा ही लगता है। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा भी गांधी के बड़े फैन हैं,क्या उन्होंने ओसामा बिन लादेन को माफ कर दिया था ?
जिस गांधी दर्शन से एक हत्यारा अब्दुल भाई बन गया उसी गांधी दर्शन को मानने वाले किसी ने कभी हत्यारे गोडसे को भाई बोला क्या? शायद सब पोथी वाले गांधी भक्त हैं !!
गांधी जी की हत्या के बाद गांधी के चेलों ने ही हज़ारों ब्राह्मणों को मार दिया, गांधी के नाम पर वोट लेने वाली पार्टी ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हज़ारों सिखों को ज़िंदा जलाया। उनके मानने वाले ही उनके कहे पर नही चले।
बाकी अहिंसा वगैरा तो बोलने में अच्छा लगता है , जो गांधी जी के समर्थन में बड़े-बड़े उत्तर लिखते हैं वही 2 टिप्पणी के बाद भड़कने लगते हैं।
नोट— घोर आश्चर्य का विषय है कि गांधी जी की तारीफ में लाखों किताबें लिखी गई हैं पर इस छोटे से आलोचनात्मक उत्तर से लोगों को समस्या हो रही है।