🔔 Special Update: Find Your 🌙 Moon Sign Learn More

Success in life is impossible, if these 10 symptoms are not in you

मजहब, पंथ तथा मत विवाद और आस्था से जुड़े शब्द है। मत या पंथ का अर्थ है राय । यह समय तथा आचार्य के अनुसार  बदलते रहते हैं । धर्म कभी न बदलने वाला है, यह हमारे जीवन से संबंधित है । अतः हमें धर्म का पालन करना चाहिए। 


क्योंकि धर्म अतिरिक्त कोई ऐसा साधन नहीं जो हमें सुख के साथ-साथ मुक्ति भी दे सके 

 धर्म के दस  लक्षण इस प्रकार हैं

"धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रिय निग्रहः ।
धीः विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।।

१. धैर्य- 

धैर्य का अर्थ है विचारों तथा कर्मों में बहुत प्रबल तथा सुदृढ़ निश्चय।ऐसे व्यक्ति हुए हैं जो अपने दृढ़ निश्चय के लिए इतिहास में विख्यात हैं। हम धैर्य के बिना धर्म का पालन नहीं कर सकते। यह धर्म का मूल सिद्धांत अथवा लक्षण है तथा इसका दृढ़ पालन करना चाहिए, यथा प्रहलाद भक्त, मीरा, ध्रुव जी ,श्री रामचंद्र जी, महाराज हरिश्चंद्र जी, बालक हकीकत राय, इत्यादि उन्हें धैर्य का परिचय दिया।
        

२.क्षमा- 

क्षमा का अर्थ है संतोष तथा सहनशीलता।यह भी जीवन के प्रत्येक दृष्टिकोण में आवश्यक है। यदि कोई हमारे प्रति कुछ कहे तो हम क्रोधित ना हो।

३. मन का दमन करना- 

मन को पूर्णतया वश में रखना या यूं कहिए कि मन को एकाग्र रखना। मन को एकाग्र करना कुछ कठिन है क्योंकि यह नदी अथवा किसी अन्य वस्तुओं की भांति दिखाई देने वाली वस्तु नहीं है अर्थात यह एक भिन्न वस्तु है।लोग नदियों को सीधा कर उन्हें एक विशिष्ट मार्ग पर जा एक विशिष्ट दिशा में बहाते है।यह भी विचार ने की बात है कि वायु को किसी एक निश्चित दिशा में प्रवाहित किया जा सकता है किंतु वायु को पूर्णतया रोक देना ना तो संभव है तथा ना ही इसकी आवश्यकता है।

मन को वश में करने के तीन मुख्य साधन है-

  • किसी ना किसी काम में लगे रहना चाहिए। 
  • दिन के सब कार्यों का समय निश्चित होना चाहिए।
  • अपने मन के विषय में यह निश्चय होना चाहिए कि यह मेरी वस्तु है तथा यह विश्वास होना चाहिए कि यह मेरे नीचे है और मेरी इच्छा अनुसार ही कार्य करेगा।
       
यदि कोई व्यक्ति काम में जुटा है तो उसे कभी चंचल विचार नहीं आवेगा। एक बेकार व्यक्ति अवश्य ही कोई ना कोई दुष्ट कर्म करने लगेगा। इसीलिए किसी ने कहा है- बेकार समय में कुछ किया कर, और नहीं तो कपड़े फाड़ कर सिया कर।

ठीक जिस प्रकार एक सेनापति को आज्ञा देते समय अपने अंदर विश्वास होता है कि (इसकी आज्ञा का पालन किया जाएगा )इसी प्रकार अपने को भी ऐसा विश्वास होना चाहिए कि मैं अपने मन का अधिकारी हूं अर्थात् मेरा अपना मन पर पूरा अधिकार है।

दूसरों की वास्तु पर मनोवृति ना होना

धर्म का चौथा लक्षण है कि हम ना तो किसी अन्य की वस्तु पाने की लालसा करें तथा ना ही ऐसा सोचे। किंतु युद्ध तथा अन्य स्थिति के समय में बात और है।यदि हमारी सेना आक्रमणकारियों को खदेड़ कर उनकी बंदूक, टोपे तथा गोलीबारी के समान पर अधिकार करें तो इस अवस्था में वह चोरी नहीं है। इस में चोरी का कोई भाव नहीं है।

4.शौच

यह बहुत आवश्यक है। पुराने समय में तथा आज भी इसका पालन किया जाता है।

5. अक्रोध

क्रोध बहुत बुरा है। पर जब कोई माता अपने बच्चे को कहती है"कि तुम स्कूल क्यों नहीं गए" तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह क्रोध में है।

6. विद्या 

पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त यथार्थ ज्ञान और उनसे यथायोग्य उपकार लेना; सत्य जैसा आत्मा में वैसा मन में, जैसा वाणी में वैसा कर्म में वर्तना इससे विपरीत अविद्या है ।


7. सत्य

२५०० वर्ष पूर्व कोई मत नहीं था । केवल इतना अंतर था कि हम परमेश्वर की पूजा इस रूप में करेगे।
जो पदार्थ जैसा हो उसको वैसा ही समझना, वैसा ही बोलना, वैसा ही करना

8. पवित्रता

इसमें मन की पवित्रता, वाह्या पवित्रता,वाणी की पवित्रता,और बुद्धि की पवित्रता शामिल है।

9. इंद्रियां निग्रह

इंद्रियां पर काबू अथवा इंद्रियों को साधना।

10. ज्ञान

      ज्ञान के द्वारा सब में परमेश्वर की आकृति को देखना,ज्ञान के
       द्वारा परमेश्वर की प्राप्ति करना।